Monday, November 16, 2009

साल भर बाद भी जारी है सुरक्षा का अनदेखी

पिछले साल खुफिया चूक का खामियाजा हमें मुंबई पर आतंकवादी हमले के रूप में चुकाना पड़ा था, अमेरिका में डेविड हेडली और तहव्वुर राणा की गिरफ्तारी के बाद यह साफ हो चुका है। इतने बड़े हमले के बाद भी देश में सुरक्षा संबंधी अनदेखी लगातार जारी है। 26/11 के हमले में समुद्री मार्ग का इस्तेमाल किया, जिसके बाद देश की खुफिया एजेंसियों ने अमेरिका पर 9/11 की तर्ज पर हवाई हमलों की आशंका व्यक्त की। लिहाजा दिसंबर, 2008 में देशभर के सभी हवाई अड्डों और पट्टियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए, लेकिन सालभर बाद भी आलम यह है कि दूरदराज के इलाकों में स्थित हवाई पट्टियां वीरान और असुरक्षित हैं जिनका आतंकवादी साजिश के लिए कभी भी इस्तेमाल हो सकता है।
बिहार में अररिया स्थित फारबिसगंज एयरपोर्ट भी इसी श्रेणी में आता है। भारत-नेपाल सीमा के पास स्थित यह एयरपोर्ट इसलिए भी संवेदनशील है क्योंकि देश में वारदातों को अंजाम देने के लिए आतंकवादी नेपाल के रास्ते घुसपैठ करते रहे हैं। संवेदनशील क्षेत्र में स्थित होने के बाद भी हालात यह हैं कि फारबिसगंज एयरपोर्ट पूरी तरह वीरान पड़ा है। यहां चारों तरफ झाड़-झंखाड़ के अलावा कुछ नहीं है। यहां रनवे और विमानों के आवागमन के लिए जरूरी आधारभूत ढांचा भी मौजूद है। हालांकि सरकारी उपेक्षा के चलते यह जर्जर होता जा रहा है, लेकिन फिर भी किसी नापाक साजिश के लिए इसके इस्तेमाल से इनकार नहीं किया जा सकता। खास बात यह है कि सत्तर के दशक में एक बार इसका उपयोग इस तरह की गतिविधियों के लिए किया जा चुका है। नेपाल में हुई एक प्लेन हाइजैकिंग के बाद अपहरणकर्ताओं ने वायुयान को इसी पट्टी पर पर उतारा था। फारबिसगंज के सीओ अजय कुमार ठाकुर के मुताबिक, इस जमीन का स्वामित्व एयरपोर्ट अथॉरिटी के पास है और वह भी साल में एक बार एयरपोर्ट की जमीन से खर-घास हटाने के लिए सालाना नीलामी कर देते हैं, उसके बाद वहां कोई झांकने भी नहीं जाता।
मामला कितना संवेदनशील है इसका अंदाजा इस बात से लगाता जा सकता है कि मुंबई पर आतंकवादी हमले के बाद खुफिया एजेंसियों ने आतंकवादियों द्वारा दूरदराज की हवाई पट्टियों के इस्तेमाल से हवाई हमले की चेतावनी दी थी। लिहाजा ऐसे किसी भी संभावित हमले को रोकने के लिए दिसंबर, 2008 में सरकार ने देशभर के दूरदराज इलाकों में स्थित ऐसे करीब 326 हवाई अड्डों और पट्टियों की सूची तैयार की थी जो या तो इस्तेमाल से बाहर हो चुके हैं या जिनका इस्तेमाल नहीं किया जा रहा। इसके अलावा 32 नॉन ऑपरेशनल एयरपोर्ट की सूची अलग से तैयार की गई थी, जिनका प्रबंधन एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पास था। नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने सभी राज्य सरकारों को प्रेषित की थी, साथ ही उन्हें निर्देश दिया गया था कि वे संबंधित जिला प्रशासन लगातार ऐसी हवाई पट्टियों पर नजर रखें और नियमित रूप से उनका निरीक्षण करते रहें। इस तरह की ज्यादातर हवाई अड्डे जम्मू-कश्मीर, राजस्थान और पूर्वोत्तर राज्यों में स्थित बताये गए हैं। इसके बावजूद फारबिसगंज जैसी हवाई पट्टियां सरकारी उपेक्षा और उदासीनता की शिकार हैं।
जबकि केंद्र सरकार इस मामले में किस कदर गंभीर है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रक्षा मंत्रा एके एंटनी ने सेना प्रमुखों से भी इस मुद्दे पर न केवल चर्चा की बल्कि इस तरह के हमलों को टालने के लिए तैयारी की जानकारी भी ली।

Wednesday, August 19, 2009

After a long time I am back on my blog, as i had forget my password. It is quite difficult for a journalist to stayaway from writing. There are too many thing which are floting in air since long. My hand are eager to write on those topics. First of all MR. Jaswant Singh and his book. After sixty years of independance we are debating on the issue which had become irrelevant. what we can get by pointing out now that who was or were responsible for partition of india. Will it make any difference. The ony thing that happened that BJP expelled Jaswant Singh from the party. This book will not change any thing whether Jinnah was responsible for partition or Nehru or Sardar patel. It is established fact that every Indian know that the political ambitions of Pandit Nehru was responsible for partition. If he could stay away for one year from the Primemininstershiip of the nation, partition could have been avoided. Every body know that Jinnah died in 1946 due to TB. After that Nehru would have take over the power easily but it did not happen. So nothing can be achived by discussing this topic today.
Expulsion of Jaswant singh from BJP exposed the party that it is not different from others. Otherwise there would be one rule for every leader. Adwani ji talks on jinnah, party applies other rule; Jaswant singh write about jinnah, another rule is applied. what a party with difference? Kalyan Singh rightly raises a question where is BJP now? This party is now decaying very fast. No principle, no issue, no ideology at all. Every leader in the party is fighting for his ego and existance, even adwani ji and rajnath singh too. No surprise upto next general election party would split into four or five big fractions eg. jaswant bjp, modi bjp, jatley bjp, sushma bjp etc. If it happens it would be called BHAGWAN JAANE PARTY....

Monday, February 23, 2009

स्लमडॉग को आठ ऑस्कर

शुरू करते हैं अमिताभ बच्चन के ब्लॉग से ... स्लम डॉग के रिलीज़ होने के बाद अमिताभ की पहली प्रतिक्रिया यही थी की isइस फ़िल्म को ऑस्कर न ही मिले तो अच्छा ... लेकिन फ़िल्म का एक नही दो नही बल्कि आठ ऑस्कर मिल गए ... क्या साबित करते हैं यह आठ ऑस्कर ... क्या भारत के सिनेमा और कलाकारों को इसने अंतररास्ट्रीय स्टार पर पहचान दिलाई है या फिर यह भारतीय गरीबी का उपहास है ... सवाल एक और है कि एक भारतीय लेखक विकास स्वरुप की किताब क्यू एंड ऐ पर आधारित इस फ़िल्म को अगर कोई भारतीय प्रोड्यूसर बनाता तो भी क्या इस फ़िल्म को आठ ऑस्कर मिलते ... शायद नही ... एक और बात, ऐ आर रहमान, गुलजार जैसे नामो कि भीड़ smilepinki को लोग भूल ही गए जैसे सिर्फ़ स्लम डॉग ही ऑस्कर जीते हो ... स्मिलेपिंकी भले ही वृतचित्र है लेकिन फिर भी इस फ़िल्म ने अंतररास्ट्रीय मंच पर पहचान तो बनाई ही है ... उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर की पिंकी के असली जीवन पर बनाई गई स्माइल पिंकी को छोटे विषय पर वृत्तचित्र वर्ग में सर्वश्रेष्ठ ऑस्कर मिला है. इस वृतचित्र को बनाया है अमरीका की मेगान मायलन ने ... पिंकी भारत के उन कई हज़ार बच्चों में से है जिनके होंठ कटे होने के कारण उन्हें सामाजिक तिरस्कार का सामना करना पड़ा ... पिंकी का एक स्वयंसेवी संगठन ने इलाज करवाया और उसकी जिंदगी बदल गई ... मेगान मायलन ने स्माइल पिंकी में इसी कहानी को परदे पर उतारा है। लेकिन यहाँ भी फ़िल्म बनने वाला एक अमेरिकी ही है ... लिहाज़ा पुरुस्कार दिए जाने के आधार पर सवाल उठाना लाज़मी है। आख़िर क्यों किसी ऐसी फ़िल्म को ऑस्कर नही मिला जिसमे भारत की सकारात्मक छवि या फिर बेहतर छवि को पेश किया गया हो ... भारत या फिर भारत पर आधारित उन्ही फिल्मो को ऑस्कर मिलता आया है जिसमे या तो पश्चिमी देशो के लोग अभिनय कर रहे थे या फिर उन्हें विदेशियों ने बनाया है ... निश्चित तौर पर मेरा इशारा गाँधी फ़िल्म कि तरफ़ है जिसमे गाँधी का रोल किया था बैन किंग्सले ने ... और उसे बनाया था रिचर्ड एत्तेंबोर्ग ने ... साफ़ है ऑस्कर उसी फ़िल्म को मिलेगा जिसे किसी विदेशी यानि पश्चिमी फिल्मकार ने बनाया हो ... यानि हम बिना वजह ही खुश हो रहे हैं ?

Friday, January 2, 2009

नया साल, नयी उम्मीदें

करीब करीब छह महीने बाद ब्लॉग पर लिखने बैठा हूं ... नया साल आ गया ... साल 2009 यानि मौत की तरफ एक और कदम ... जो भी पढ़ेगा कहेगा,, कहेगा क्या निराशावादी सोच है ... मौत की तरफ कदम ... नये साल पर ऐसी सोच ... लेकिन जिन्दगी की हकीकत यही है ... किसी महापुरुष (नाम याद नहीं) से जब पूछा गया था कि जिन्दगी क्या है ... तो उनका सीधा सा उत्तर था ... मौत का इंतजार ... इस लिहाज से देखे तो जिन्दगी का एक साल और कम हो गया ... और मौत का वरण करने के लिए हमने एक कदम और आगे बढ़ा दिया ... बात जब मौत की निकल ही पड़ी है ... तो सोचता हूं कि क्या मौत या ये शब्द वास्तव में निराशाजनक है ... passimistic है ... क्या मौत का जिक्र आशाजनक या पॉजिटिव सेंस में नहीं हो सकता ... मेरा विचार से शायद हो सकता है ... क्योंकि ये मौत ही है जो इंसान को डरपोक बनाती है ... केवल मौत का ही डर होता है तो इंसान से कुछ भी करवा लेता है ... जिसने इस डर को जीत लिया वो कुछ भी कर सकता है ... ये तो हुआ मौत का पॉजिटिव पहलू ... लेकिन इसी विचार का निगेटिव यानि नकारात्मक पहलू भी हो सकता है कि मौत के डर को जीतने वाले कितने विध्वंसक हो सकते हैं ... अगर इंसान में मौत का खौफ न हो तो हर इंसान मरने -मारने पर उतारू हो जायेगा ...
खैर ... बात हो रही थी नये साल की ... इस बार नया साल कैसे दबे पॉव आ गया पता ही नहीं चला ... शायद ये हालात का असर है ... न कोई खुशी,, न कोई जश्न ... अन्दर से ही कोई उत्साह नहीं ... ऐसा नहीं होना चाहिये,, बाहरी हालातों को इस तरह शायद खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिये लेकिन असर तो हुआ ही ... लेकिन फिर भी कतरा कतरा बह रही इस जिन्दगी में उम्मीद की किरण अभी भी चमक रही है ... कि कहीं न कहीं इस जिन्दगी के समुन्दर में मेरे हिस्से का मोती भी मेरा इंतजार कर रहा होगा ... और इसके लिए इस समुन्दर में गोता तो लगाना ही होगा फिर भले ही लहरें उल्टी ही क्यों न चल रही हों ...
देश में भी कुछ ऐसा नहीं हो रहा जो उत्साह का संचार कर सके ... अर्थव्यवस्था पर मंदी की मार है ... देश में पड़ोसी देश से आयातित आतंकवाद चरम पर है ... और सफेद कपड़े पहनने वाले हमारे नेता पहले की तरह दुनिया भर में देश में आतंकवादी हमले का रोना रो रहे हैं ... जैसे हममें तो इतनी कूवत है नहीं कि इस मसले की जड़ को उखाड़ सकें ... पता नहीं देश को ऐसे नेता कब तक ढोने पड़ेंगे ... जो अपना ही बोझ मुश्किल से उठा पाते हैं ... क्यों नहीं मिलते हमारे देश को बिल क्लिंटन और बराक ओबामा जैसे युवा नेता ... जिनकी बातों में उत्साह हो,, चाल में तेजी हो और विचारों में दृढ़ता ... जो कहें करके दिखायें ... कुछ कहें तो लोगों को उस पर विश्वास हो ... राजीव गांधी कहीं न कहीं इस फ्रेम में फिट बैठते थे ... लेकिन पहले कार्यकाल में वो परिपक्वता नहीं दिखा पाये ... और दुर्भाग्यवश भगवान ने दूसरा मौका उन्हें दिया नहीं ...
ऋतु राज गुप्ता

Wednesday, July 23, 2008

क्या यह सही था ?


23 जुलाई, 2008
पिछले दो दिनों से सरकार को बचाने और गिराने का खेल चल रहा था ... सत्ता पक्ष यानि यूपीए दावा कर रहा था कि उसको सदन में बहुमत हासिल है ... लेकिन विपक्ष का अपना दावा था ... जिस तरह का अंक गणित था उससे कहीं न कहीं लग रहा था कि मनमोहन सिंह की सरकार गिर ही जायेगी ... लेकिन यूपीए के साथ समाजवादी पार्टी साथ आयी और शुरु हो गया जोड़तोड़ का खेल ... हर कोई जान रहा था कि पर्दे के पीछे क्या कुछ चल रहा है ... हर कोई जान समझ रहा था कि नरसिम्हा राव ने जिस तरह झामुमो के सांसदों की मदद से अपनी सरकार का बचाव किया था ... करीब करीब उसी तरह से मनमोहन सिंह की सरकार को बचाने की कोशिश की जा रही है ... लेकिन यह सब कुछ पर्दे के पीछे चल रहा था ... दिख नहीं रहा था लेकिन हर कोई जानता था ... लेकिन मंगलवार की शाम को जिस तरह भाजपा के तीन सांसदों ने लोकसभा में नोटों की गड्डियां लहरायीं ... उसके बाद जो बात दबी छुपी थी ... दुनिया के सामने आ गयी ... लोकसभा में इसके बाद जमकर हंगामा हुआ ... आखिरकार दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का नंगा सच सामने आ चुका था ... अब मीडिया और स्वयंभू बुद्धिजीवियों में इस बात की बहस शुरु हो गयी कि क्या भाजपा के सांसदों ने जो कुछ किया वो सही था ... सभी की अपनी अपनी राय थी ... कुछ का कहना था कि जब इन सांसदों को रिश्वत दी जा रही थी तो उन्होंने पुलिस को क्यों नहीं बुलाया ... तो कुछ का कहना था कि उन्हें इस तरह नोटों की गड्डियां लहराने की बजाये लोकसभा के अध्यक्ष के पास जाकर शिकायत करनी चाहिये थी ... बजाये इसके कि वो भारतीय लोकतंत्र की इस तरह सरेआम धज्जियां उड़ाते ... ज्यादातर बुद्धिजीवियों का यही मानना था कि तीनों सांसदों ने इस तरह का कारनामा अंजाम देकर भारत की छवि को दुनिया भर में बदनाम किया है ... लेकिन कोई यह नहीं सोच रहा कि भले ही भाजपा के यह तीनों सांसद दागदार छवि वाले हैं ... लेकिन उनकी इस हरकत से भारतीय लोकतंत्र का सच सामने आया है ... मीडिया के जो लोग यह कह रहे हैं कि तीनों सांसदों को लोकसभा अध्यक्ष के पास जाकर शिकायत करनी चाहिये थी ... तो मैं तो कम से कम उनसे यह जानना चाहूंगा कि क्या उस सूरत में वो इस खबर को उतनी ही प्रमुखता से प्रसारित करते ... जैसा कि उन्होंने किया ... करीब करीब सभी चैनल उन तस्वीरों को बराबर चार-पांच घंटों तक दिखाते रहे जिसमें तीनों सांसद नोटों को लहरा रहे थे ... यह ठीक उसी तरह था जैसे क्रांतिकारियों ने बहरे अंग्रेजों को जगाने के लिए असेम्बली में बम फोड़ा था ... अगर इन मीडियाकर्मियों या स्वयंभू बुद्धिजीवियों को लगता था कि यह गलत हुआ है या इससे देश की बदनामी होती है ... तो उन्होंने क्यों नहीं उन तस्वीरों का प्रसारण रुकवा दिया ... आखिर क्यों उन्होंने देश की बदनामी होने दी ... उस समय तो देश की अस्मत उनके ही हाथ में थी ... सभी चैनल्स के यह तथाकथित बुद्धिजीवी आपस में बात करते और बचा लेते देश की अस्मत लुटने से ... लेकिन नहीं ... अगर ऐसा होता तो उन्हें बोलने के लिए मसाला कहां से मिलता ... अगर इन बुद्धिजीवियों का बस चलता तो भगत सिंह के असेम्बली में बम फोड़ने को भी गलत ठहरा देते ... कहते भगत सिंह को चाहिये था कि वो गली गली पर्चे बांटते ... नुक्कड़ नुक्कड़ सभा करते और लोगों तक अपनी बात पहुंचाते ... दरअसल कोई कुछ भी कहे ... जो कुछ हुआ बहुत अच्छा हुआ ... क्योंकि देश और दुनिया के सामने यह सच आ ही गया कि जिन सांसदों को हमारे देश के नागरिक चुनकर भेजते हैं वो क्या कुछ करते हैं ... जो चीजें पर्दे के पीछे हो रही थीं ... वो खुलकर सामने आ गयीं ... और यह देशहित में ही हुआ है ... अब लोग इसका राजनीतिक नफा नुकसान नापजोख रहे हैं ... लेकिन कुल मिलाकर देखा जाये तो यही भारतीय लोकतंत्र का काला सच है ... और इसे सामने आना ही चाहिये था ...

Tuesday, June 3, 2008

एक और आरुषि

4th May, 2008
पूरे मीडिया जगत में आरुषि हत्याकांड पिछले कुछ समय से सबसे बड़ी खबर बनी हुई है ... करीब करीब हर चैनल पर इस हत्याकांड पर घंटों बहस चल रही है ... कोई चैनल फोरेन्सिक एक्सपर्ट को बुलाकर चर्चा कर रहा है ... किसी ने प्राइवेट डिटेक्टिव को बुलाया तो कोई पूर्व पुलिस अधिकारियों को अपने स्टूडियो में बुलाकर हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने की कोशिश कर रहा है ... नोएडा पुलिस ने आरुषि और नौकर हेमराज के कत्ल के लिए डॉ. तलवार को मुख्य आरोपी माना है लेकिन साथ ही आरुषि की मां नुपुर तलवार की भूमिका को भी पुलिस ने संदिग्ध माना है ... लेकिन कुछ ज्यादा संवेदनशील लोगों का मानना है कि बाप तो फिर भी दरिंदा हो सकता है लेकिन मां तो आखिर मां होती है ... वो कैसे,, अपने कलेजे के टुकड़े को मरते हुए देख सकती है ... लेकिन इस पूरे प्रकरण के दौरान हाल ही में एक और घटना प्रकाश में आयी ... हरदोई के पास एक गांव में मां और बाप दोनों ने मिलकर न सिर्फ अपनी बेटी की गला घोंट कर हत्या कर दी ... बल्कि उसकी लाश को घर में ही एक कोठरी में दफना कर उस पर भूसा डाल दिया ... लेकिन आरुषि हत्याकांड के पीछे पागलपन की हद तक हाथ धोकर पड़े मीडिया का ध्यान इस खबर पर नहीं गया ... और अखबारों में भी यह खबर अंदर के पन्नों में दबकर रख गयी ... हरदोई में बेटी का कत्ल करने के पीछे जो वजह सामने आयी उसके मुताबिक बेटी का प्रेम प्रसंग पड़ोस में रहने वाले एक लड़के से चल रहा था और वो इस दौरान गर्भवती हो गयी थी ... लिहाजा मां बाप ने इज्जत की खातिर अपनी ही बेटी की हत्या कर दी ... ताकि मामला घर के घर में ही रह जाये ... सार यह है कि यह कोई अनोखी बात नहीं है कि मां- बाप ने अपनी ही औलाद का कत्ल किया हो ... क्योंकि आरुषि हत्याकांड में भी कुछ कुछ ऐसी ही बातें सामने आ रही हैं ... और कोई बड़ी बात नहीं कि तलवार दम्पति ने मिलकर नौकर और बेटी का कत्ल कर दिया हो ... लिहाजा उनके प्रति सहानुभूति जताना काफी बड़ी भूल साबित हो सकती है जबकि सारे सबूत तलवार दम्पति की तरफ ही इशारा कर रही हों ...

Sunday, June 1, 2008

हम क्या कुछ नहीं कर सकते

1 जून, 2008
आज रवीश जी का ब्लाग पढ़ रहा था ... बड़े पत्रकार हैं ... उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा है कि उत्तर प्रदेश में इस बार हाई स्कूल की परीक्षा में पंद्रह लाख परीक्षार्थी फेल हो गये ... उनके ब्लॉग को पढ़ने से मैं जो निष्कर्ष निकाल पाया, उसका लब्बोलुआब यही था कि आजकल शिक्षक बच्चों को पढ़ाते ही नहीं है लिहाजा बिना नकल किये बच्चों का पास होना बहुत ही मुश्किल होता जा रहा है ... पंद्रह लाख परीक्षार्थियों के फेल होने पर रवीश जी चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश में घटित हुए इस भीषण हादसे पर एक शोक सभा का आयोजन किया जाये ... लेकिन मेरे दिल और दिमाग में कुछ और ही आता है ... कि आखिर देश में इतना कुछ गलत हो रहा है ... और हर कोई चाहता है कि वो ठीक हो ... तो फिर यह ठीक क्यों नहीं हो रहा ... आखिर क्या वजह है इसकी ? देश के युवाओं में इतना जोश और इतनी सामर्थ्य है कि देश का कायाकल्प हो सकता है ... सबसे बड़ी बात यह है देश का युवा चाहता भी है कि देश में व्याप्त बुराइयां दूर हों और दुनिया में हमारा देश अमेरिका और दूसरे विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा नजर आये ... लेकिन इसके लिए जरुरत है संगठित होने की, एक विचारधारा पर दृढ़ रहने की और इस बात की प्रतिज्ञा करने की,, कि जब तक देश को बुराइयों से मुक्त नहीं कर देंगे ... चैन से नहीं बैठेंगे ... आखिर क्यों पढ़े लिखा युवा राजनीति में नहीं आते ... क्यों राजनीति में आने के लिए बाहुबली और धनकुबेर होना जरुरी है ... कोई तो बात है ... हालांकि देश के निर्वाचन आयोग ने काफी प्रयास करके चुनावों को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाया है ... लेकिन फिर भी आज एक आम आदमी के लिए चुनाव लड़ना एक बहुत बड़ा काम है ... क्योंकि उसे न तो मीडिया कवरेज मिलेगा और न ही दूसरे बाहुबली प्रत्याशी उसे चुनाव लड़ने देंगे ... आज देश की संसद में ऐसे लोग विराजमान हैं जो न तो किसी मुद्दे पर बोल सकते हैं और न ही संसद में अपने क्षेत्र की आवाज़ को बुलन्द कर सकते हैं ... उन्हें तो बस शोर मचाना है और सत्ता के अंकगणित से अपना लाभ निकालना है ... ताकि वो और उनकी आने वाली पुश्ते बैठे बैठे खाती रहें और देश की छाती पर मूंग दलती रहें ... दरअसल यह ब्लॉग बड़ा अच्छा मंच है ... दोस्तों अगर आप भी देश के प्रति उतनी ही कशिश से सोचते हैं तो जुड़ना ही होगा ताकि इस देश के प्रधानमंत्री का पद सत्तर से ज्यादा उमर के नेताओं के लिए आरक्षित न रहे ... देश को चाहिये युवा प्रधानमंत्री, युवा राष्ट्रपति और ऐसी संसद जहां हर समस्या के हर पहलू पर आधुनिक परिप्रेक्ष्य में विचार हो और जब भी कोई योजना लागू हो तो उसका लाभ हर उस व्यक्ति तक पहुंचे जिसके लिए वो योजना लायी गयी है ...