Tuesday, June 3, 2008

एक और आरुषि

4th May, 2008
पूरे मीडिया जगत में आरुषि हत्याकांड पिछले कुछ समय से सबसे बड़ी खबर बनी हुई है ... करीब करीब हर चैनल पर इस हत्याकांड पर घंटों बहस चल रही है ... कोई चैनल फोरेन्सिक एक्सपर्ट को बुलाकर चर्चा कर रहा है ... किसी ने प्राइवेट डिटेक्टिव को बुलाया तो कोई पूर्व पुलिस अधिकारियों को अपने स्टूडियो में बुलाकर हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने की कोशिश कर रहा है ... नोएडा पुलिस ने आरुषि और नौकर हेमराज के कत्ल के लिए डॉ. तलवार को मुख्य आरोपी माना है लेकिन साथ ही आरुषि की मां नुपुर तलवार की भूमिका को भी पुलिस ने संदिग्ध माना है ... लेकिन कुछ ज्यादा संवेदनशील लोगों का मानना है कि बाप तो फिर भी दरिंदा हो सकता है लेकिन मां तो आखिर मां होती है ... वो कैसे,, अपने कलेजे के टुकड़े को मरते हुए देख सकती है ... लेकिन इस पूरे प्रकरण के दौरान हाल ही में एक और घटना प्रकाश में आयी ... हरदोई के पास एक गांव में मां और बाप दोनों ने मिलकर न सिर्फ अपनी बेटी की गला घोंट कर हत्या कर दी ... बल्कि उसकी लाश को घर में ही एक कोठरी में दफना कर उस पर भूसा डाल दिया ... लेकिन आरुषि हत्याकांड के पीछे पागलपन की हद तक हाथ धोकर पड़े मीडिया का ध्यान इस खबर पर नहीं गया ... और अखबारों में भी यह खबर अंदर के पन्नों में दबकर रख गयी ... हरदोई में बेटी का कत्ल करने के पीछे जो वजह सामने आयी उसके मुताबिक बेटी का प्रेम प्रसंग पड़ोस में रहने वाले एक लड़के से चल रहा था और वो इस दौरान गर्भवती हो गयी थी ... लिहाजा मां बाप ने इज्जत की खातिर अपनी ही बेटी की हत्या कर दी ... ताकि मामला घर के घर में ही रह जाये ... सार यह है कि यह कोई अनोखी बात नहीं है कि मां- बाप ने अपनी ही औलाद का कत्ल किया हो ... क्योंकि आरुषि हत्याकांड में भी कुछ कुछ ऐसी ही बातें सामने आ रही हैं ... और कोई बड़ी बात नहीं कि तलवार दम्पति ने मिलकर नौकर और बेटी का कत्ल कर दिया हो ... लिहाजा उनके प्रति सहानुभूति जताना काफी बड़ी भूल साबित हो सकती है जबकि सारे सबूत तलवार दम्पति की तरफ ही इशारा कर रही हों ...

Sunday, June 1, 2008

हम क्या कुछ नहीं कर सकते

1 जून, 2008
आज रवीश जी का ब्लाग पढ़ रहा था ... बड़े पत्रकार हैं ... उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा है कि उत्तर प्रदेश में इस बार हाई स्कूल की परीक्षा में पंद्रह लाख परीक्षार्थी फेल हो गये ... उनके ब्लॉग को पढ़ने से मैं जो निष्कर्ष निकाल पाया, उसका लब्बोलुआब यही था कि आजकल शिक्षक बच्चों को पढ़ाते ही नहीं है लिहाजा बिना नकल किये बच्चों का पास होना बहुत ही मुश्किल होता जा रहा है ... पंद्रह लाख परीक्षार्थियों के फेल होने पर रवीश जी चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश में घटित हुए इस भीषण हादसे पर एक शोक सभा का आयोजन किया जाये ... लेकिन मेरे दिल और दिमाग में कुछ और ही आता है ... कि आखिर देश में इतना कुछ गलत हो रहा है ... और हर कोई चाहता है कि वो ठीक हो ... तो फिर यह ठीक क्यों नहीं हो रहा ... आखिर क्या वजह है इसकी ? देश के युवाओं में इतना जोश और इतनी सामर्थ्य है कि देश का कायाकल्प हो सकता है ... सबसे बड़ी बात यह है देश का युवा चाहता भी है कि देश में व्याप्त बुराइयां दूर हों और दुनिया में हमारा देश अमेरिका और दूसरे विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा नजर आये ... लेकिन इसके लिए जरुरत है संगठित होने की, एक विचारधारा पर दृढ़ रहने की और इस बात की प्रतिज्ञा करने की,, कि जब तक देश को बुराइयों से मुक्त नहीं कर देंगे ... चैन से नहीं बैठेंगे ... आखिर क्यों पढ़े लिखा युवा राजनीति में नहीं आते ... क्यों राजनीति में आने के लिए बाहुबली और धनकुबेर होना जरुरी है ... कोई तो बात है ... हालांकि देश के निर्वाचन आयोग ने काफी प्रयास करके चुनावों को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाया है ... लेकिन फिर भी आज एक आम आदमी के लिए चुनाव लड़ना एक बहुत बड़ा काम है ... क्योंकि उसे न तो मीडिया कवरेज मिलेगा और न ही दूसरे बाहुबली प्रत्याशी उसे चुनाव लड़ने देंगे ... आज देश की संसद में ऐसे लोग विराजमान हैं जो न तो किसी मुद्दे पर बोल सकते हैं और न ही संसद में अपने क्षेत्र की आवाज़ को बुलन्द कर सकते हैं ... उन्हें तो बस शोर मचाना है और सत्ता के अंकगणित से अपना लाभ निकालना है ... ताकि वो और उनकी आने वाली पुश्ते बैठे बैठे खाती रहें और देश की छाती पर मूंग दलती रहें ... दरअसल यह ब्लॉग बड़ा अच्छा मंच है ... दोस्तों अगर आप भी देश के प्रति उतनी ही कशिश से सोचते हैं तो जुड़ना ही होगा ताकि इस देश के प्रधानमंत्री का पद सत्तर से ज्यादा उमर के नेताओं के लिए आरक्षित न रहे ... देश को चाहिये युवा प्रधानमंत्री, युवा राष्ट्रपति और ऐसी संसद जहां हर समस्या के हर पहलू पर आधुनिक परिप्रेक्ष्य में विचार हो और जब भी कोई योजना लागू हो तो उसका लाभ हर उस व्यक्ति तक पहुंचे जिसके लिए वो योजना लायी गयी है ...