पिछले साल खुफिया चूक का खामियाजा हमें मुंबई पर आतंकवादी हमले के रूप में चुकाना पड़ा था, अमेरिका में डेविड हेडली और तहव्वुर राणा की गिरफ्तारी के बाद यह साफ हो चुका है। इतने बड़े हमले के बाद भी देश में सुरक्षा संबंधी अनदेखी लगातार जारी है। 26/11 के हमले में समुद्री मार्ग का इस्तेमाल किया, जिसके बाद देश की खुफिया एजेंसियों ने अमेरिका पर 9/11 की तर्ज पर हवाई हमलों की आशंका व्यक्त की। लिहाजा दिसंबर, 2008 में देशभर के सभी हवाई अड्डों और पट्टियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए, लेकिन सालभर बाद भी आलम यह है कि दूरदराज के इलाकों में स्थित हवाई पट्टियां वीरान और असुरक्षित हैं जिनका आतंकवादी साजिश के लिए कभी भी इस्तेमाल हो सकता है।
बिहार में अररिया स्थित फारबिसगंज एयरपोर्ट भी इसी श्रेणी में आता है। भारत-नेपाल सीमा के पास स्थित यह एयरपोर्ट इसलिए भी संवेदनशील है क्योंकि देश में वारदातों को अंजाम देने के लिए आतंकवादी नेपाल के रास्ते घुसपैठ करते रहे हैं। संवेदनशील क्षेत्र में स्थित होने के बाद भी हालात यह हैं कि फारबिसगंज एयरपोर्ट पूरी तरह वीरान पड़ा है। यहां चारों तरफ झाड़-झंखाड़ के अलावा कुछ नहीं है। यहां रनवे और विमानों के आवागमन के लिए जरूरी आधारभूत ढांचा भी मौजूद है। हालांकि सरकारी उपेक्षा के चलते यह जर्जर होता जा रहा है, लेकिन फिर भी किसी नापाक साजिश के लिए इसके इस्तेमाल से इनकार नहीं किया जा सकता। खास बात यह है कि सत्तर के दशक में एक बार इसका उपयोग इस तरह की गतिविधियों के लिए किया जा चुका है। नेपाल में हुई एक प्लेन हाइजैकिंग के बाद अपहरणकर्ताओं ने वायुयान को इसी पट्टी पर पर उतारा था। फारबिसगंज के सीओ अजय कुमार ठाकुर के मुताबिक, इस जमीन का स्वामित्व एयरपोर्ट अथॉरिटी के पास है और वह भी साल में एक बार एयरपोर्ट की जमीन से खर-घास हटाने के लिए सालाना नीलामी कर देते हैं, उसके बाद वहां कोई झांकने भी नहीं जाता।
मामला कितना संवेदनशील है इसका अंदाजा इस बात से लगाता जा सकता है कि मुंबई पर आतंकवादी हमले के बाद खुफिया एजेंसियों ने आतंकवादियों द्वारा दूरदराज की हवाई पट्टियों के इस्तेमाल से हवाई हमले की चेतावनी दी थी। लिहाजा ऐसे किसी भी संभावित हमले को रोकने के लिए दिसंबर, 2008 में सरकार ने देशभर के दूरदराज इलाकों में स्थित ऐसे करीब 326 हवाई अड्डों और पट्टियों की सूची तैयार की थी जो या तो इस्तेमाल से बाहर हो चुके हैं या जिनका इस्तेमाल नहीं किया जा रहा। इसके अलावा 32 नॉन ऑपरेशनल एयरपोर्ट की सूची अलग से तैयार की गई थी, जिनका प्रबंधन एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पास था। नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने सभी राज्य सरकारों को प्रेषित की थी, साथ ही उन्हें निर्देश दिया गया था कि वे संबंधित जिला प्रशासन लगातार ऐसी हवाई पट्टियों पर नजर रखें और नियमित रूप से उनका निरीक्षण करते रहें। इस तरह की ज्यादातर हवाई अड्डे जम्मू-कश्मीर, राजस्थान और पूर्वोत्तर राज्यों में स्थित बताये गए हैं। इसके बावजूद फारबिसगंज जैसी हवाई पट्टियां सरकारी उपेक्षा और उदासीनता की शिकार हैं।
जबकि केंद्र सरकार इस मामले में किस कदर गंभीर है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रक्षा मंत्रा एके एंटनी ने सेना प्रमुखों से भी इस मुद्दे पर न केवल चर्चा की बल्कि इस तरह के हमलों को टालने के लिए तैयारी की जानकारी भी ली।
Monday, November 16, 2009
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